Kshatriyas (Rajputs) : A Race of Soldiers & Farmers


इतिहास में 99 % क्षत्रिय आम सैनिक और किसान रहे हैं। पुराने जमाने मे क्षत्रिय परिवार अपने वंश/कुल/भाईबंध के जागीरदार/ठिकानेदार/तालुकेदार के आश्रित होते थे। जागीरदार आदि ही जमीन के मालिक होते थे और बाकी राजपूत इनके आश्रय पर जीते थे और जरूरत पड़ने पर इनके लिये युद्ध में शामिल होना उनके लिये अनिवार्य होता था। कुछ लोग सुदूर प्रान्तों में जाकर सैन्य सेवा देकर अपना भाग्य आजमाते थे।

आगरा मथुरा क्षेत्र के भदौड़िया चौहानों के विषय में 17वि सदी के ब्रिटिश यात्री पीटर मुंडी को quote करते हुए प्रोफ़ेसर इरफ़ान हबीब लिखते हैं कि “वे असंख्य मेहनती और बहादुर जाति हैं। प्रत्येक गाँव में एक छोटा किला होता है। वे हकीम को बिना लड़ाई किये राजस्व नहीं देते थे। हल चलाने वाले गले में बंदूक और कमर में बारूद की थैली लटकाये रहते हैं”

साफ है कि ये 99% क्षत्रिय आलीशान महलो में नही रहते थे और ना ही विलासिता की जिंदगी जी सकते थे। उनको अपनी रोजी रोटी के जुगाड़ के लिये सिर्फ अपना पसीना नही बल्कि अपना खून बहाना पड़ता था और दूरस्थ विषम भूगौलिक परिस्थितियों में भी लड़ने जाना होता था। इस तरह वो अन्य जातियो जिन्हें आज पिछड़ा में गिना जाता है और जो अपने गांव बैठे खेती कर जीवनयापन करती थी, उनसे ज्यादा विषम परिस्थियों में जीते थे।

अंग्रेजो के भारत के भाग्य विधाता बनने के बाद जब देश मे राजनीतिक ऐक्य स्थापिय हो गया और राजाओ और जमींदारों की स्थायी और अस्थायी सेनाओं की कोई उपयोगिता नही रह गई और उन्हें dismantle कर दिया गया तो इन राजपूत सैनिकों को खेती करने के लिये विवश होना पड़ा। राजपूत जमींदारो/तालुकेदारों ने इन्हें खेती के लिये जमीने दी। इस समय 95% राजपूत अन्य कृषक जातियो की तरह किसान थे।

अंग्रेजो से कांग्रेस के पक्ष में सत्ता हस्तांतरण के बाद जमींदारी एक्ट लागू कर बड़े जमींदारों को समाप्त कर दिया गया जो कि राजपूतो के सम्पन्न और ताकतवर जाती माने जाने का एकमात्र कारण था। अब राजपूतो के पास ना तो राज थे, ना ही जमीनदारी, ना बनियो की तरह पैसा और ना ही ब्राह्मणों की तरह शिक्षित और नौकरीपेशा थे। इस दौर में राजपूत राजनीति में भी बहुत पिछड़े थे। ऐसे में राजपूतो की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक हैसियत किसी भी अन्य कृषक जाती के बराबर थी।

इसके अलावा कई क्षेत्र ऐसे थे जहां 47 तक भी आम राजपूत जागीरदारों/ठिकानेदारों की सेवा में थे और उनपर निर्भर थे। जब जमींदारी उन्मूलन हुआ तो वहां आम राजपूतो के हिस्से कुछ नही आया और वो उन कृषक जातियो से भी पिछड़ गए जो इन जमींदारों की जमीनों पर पहले से खेती करते थे।

तथाकथित आजाद भारत मे राजपूतो के पास ना राज छोड़ा और ना जमीने छोड़ी, नौकरी और व्यापार में तो थे ही नही, तो फिर किस आधार पर अन्य कृषक जातियो को तो पिछड़ा बताकर आरक्षण दिया जाता है लेकिन राजपूतो को फारवर्ड बोलकर उन्हें इससे वंचित किया जाता है?

अगर राजपूतो को इस वजह से आरक्षण से वंचित किया जाता है कि वो राजा और जमींदार थे तो उनके राज नही तो कम से कम उनकी जमीदारिया तो वापिस करो या फिर उनका मुआवजा देते। ये राज और जमीने अपना खून बहाकर पुरुषार्थ के बल हासिल करी थी, किसी खैरात में नही। इन्हें लोकतंत्र में समानता का वादा कर मुफ्त में ले लिया गया और राजपूतो ने भी लोकतंत्र और समानता के लिये बिना विरोध किये इन्हें दे दिया। हालांकि बनियो की संपत्ति को सरकार ने हाथ नही लगाया। लेकिन क्या हुआ उस समानता का? समानता लाने की बात की लेकिन आरक्षण की व्यवस्था कर असमानता और अत्याचार को बढ़ावा दिया। और अगर शैक्षिक,नौकरियों और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था कर भी दी तो जिस राजपूत जाती से राज और जमीने छीन कर उसे गरीब और कमजोर कर दिया गया था उसे फारवर्ड बता कर आरक्षण से वंचित क्यों किया गया? पहले राज और जमीने छीनकर और फिर आरक्षण से भी वंचित कर अन्य प्रतिद्वंदी जातियो को राजपूतो से आगे बढ़ाने का षड्यंत्र क्यों किया? जब राज और जमीने ले ली तो फिर किस बात के फारवर्ड और संपन्न? या तो राज और जमीने वापिस देते या आरक्षण।

राजपूत राजा थे, जमींदार थे, सैनिक थे और किसान थे। राजा और जमींदार रहे नही और सेना में क्षेत्र आधारित कोटा होने और अधिकतर रेजिमेंट में जाति वर्ग आधारित आरक्षण होने के कारण एक हद से ज्यादा राजपूत भर्ती नही हो सकते। पुलिस और अर्धसैनिक बलों में आरक्षण है ही। इसलिये आज बहुसंख्यक राजपूत किसान ही हैं। भारत की सरकार से राजपूतो की यह मांग होनी चाहिये कि अगर राजपूतो को उनका राज और जमींदारी वापिस नही दे सकती तो या तो कृषक जाती होने और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर उन्हें नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़ा के अंतर्गत आरक्षण दे या फिर सेना और अर्धसैनिक बलों में कोटा खत्म कर राजपूतो को सैन्य बलों में कम से कम 80% प्रतिशत आरक्षण दे। देश के लिये पहले भी राजपूत मरते मिटते आए हैं और अब भी करोड़ों अकेले लड़ने मरने को तैयार हैं, बाकी जातियां सैन्य बलों में भर्ती होने की ज्यादा टेंशन ना लें और खा पीकर मौज करें।

Written by Pushpendra Guhilot


क्षत्रिय सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक चेतना मंच।

Jai Ramdev ji | Jai Tejaji |JaiGogaji |Jai Jambho ji| Jai Dulla Bhati | Jai Banda Bahadur |

Important Links

Contact Us

© 2023 kshatriyavoice

Start typing and press Enter to search

Shopping Cart