समाजवाद की आड़ लेकर क्षत्रियो से भूमि छीन पूंजीवाद को बढ़ावा दिया


रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन मुकेश अंबानी के बेटे की शादी चर्चा में है। एक एस्टीमेट के अनुसार कोई 500 मिलियन डॉलर अब तक खर्च हो चुके है। Extravegance ऐसा की आज़ाद भारत के इतिहास में आज तक नहीं देखा गया। दुनिया भर के सेलिब्रिटी जिनमे Kim Kardashian से लेकर शंकराचार्य तक शामिल है ,सभी ने शिरकत की। चलो अच्छी बात है। अगले की संपत्ति, अगला जैसे चाहे खर्च करे।
पर ये मुकेश अंबानी जी के पास इतना पैसा आया कहां से। इनके पिताजी से विरासत में मिला कोई शक नही लेकिन धीरूभाई अंबानी ने भी इतना कहां से कमाया। सामान्य परिवार से थे भाई। रिलायंस इतना बड़ा ग्रुप है। मुकेश जी का क्या रोल रहता है कंपनी में। क्या वे खुद काम कर के इतना कमाते है या फिर इनके नीचे लोग काम करते है। जब इनके पास इतना बड़ा स्टाफ है तो उस स्टाफ का इस संपत्ति में हिस्सा क्यों नही है। असली मेहनत तो वही लोग कर रहे है। अंबानी जी तो बैठे बैठे कुर्सी तोड़ रहे है या बड़ी डील्स साइन कर रहे है। प्रॉपर्टी का असली हिस्सा तो रिलायंस के कर्मचारियों को मिलना चाहिए जिन्होंने इस कंपनी को इतनी ऊंचाइयों तक पहुंचाया। सही बात है ना?
अब आप कहेंगे की ये क्या एकदम बेतुकी बात है। रिलायंस ग्रुप में अंबानी परिवार का मेजोरिटी हिस्सा है और ये अथाह पैसा लीगली उन्ही का है। At the end of the day, ownership matter करती है और मालिकाना हक मुकेश जी के परिवार का है तो फिर आखिर कोई सामान्य स्टाफ कर्मी किस अधिकार से इस संपत्ति में हिस्सा मांग सकता है।
Ummm लॉजिकली और कानूनी रूप से आप सही हो। पर क्या यही सब 1947 के बाद भारत के घटित नहीं हुआ था। जमीदारी उन्मूलन तथा लैंड सेलिंग कानून लाकर जिस ड्रेकोनियन तरीके से राजपूतों से उनकी जमीनें छीनी गई क्या उस प्रोसेस में यही तरीका इस्तेमाल नहीं किया गया था? ध्यान रहे की ये पूरी जमीन राजपूतों की थी। हमने अपने भुजा बल से इस विजित किया था। चूंकि उस समय ज्यादातर जमीन जोतने लायक नही होती थी और कृषि मुश्किल थी इसलिए इसका समाधान करने के लिए राजपूत शासकों ने सिंचाई की व्यवस्था करवाई, काश्तकारों को इन जमीनों पर बसाया गया, उनके लिए बाकी agrarian inputs की व्यवस्था करवाई गई ताकि खेती सुचारू रूप से हो सके।
In fact मारवाड़ और शेखावाटी के कई हिस्सों में राजपूतों ने किसानों को सेटल करवा कर उन्हे जोतने के लिए अपनी जमीन दी। इन रिफॉर्म्स का यह फायदा हुआ की राजस्थान जैसी सूखी जगह पर भी किसानी लगभग सही रही और बीसवीं सदी से पहले हमे किसानों की grievances के रिकॉर्ड नहीं मिलते। ध्यान रहे जमीन राजपूतों की थी लेकिन जोत दूसरे रहे थे।
अब आता है आधुनिक युग और लोकतांत्रिक शासन की मांग करने वाले कम्युनिस्ट नेता जिनमे नेहरू प्रमुख थे। इस नेता वर्ग का यह मानना था की जमीन जोतने वाला ही जमीन का असली मालिक है इसलिए land redistribution प्रोग्राम हो। इस लॉजिक पर यह वर्ग किस तरह आया वह यही जाने लेकिन ऐसा रूस में पहले हो चुका था जब वहां के शासक वर्ग को एलिमिनेट कर साम्यवादी सरकार सत्ता में आई।
लेकिन मजे की बात ये है की communism/socialism को profess करने वाले इन नेताओं ने कभी भी बड़े उद्योगपतियो पर यह ट्विस्टेड लॉजिक अप्लाई करना उचित नहीं समझा। जबकि देखा जाए तो पूंजीपति तो उनके आइडियोलॉजिकल ऑपोनेंट्स थे और सबसे पहला युद्ध कैपिटलिज्म के खिलाफ ही छेड़ा जाना चाहिए था।
ऐसा इसलिए नही हुआ क्योंकि इंडियन नेशनल कांग्रेस के सबसे बड़े फाइनेंसर यही इंडस्ट्रियलिस्ट थे। जमनानलाल बजाज से लेकर घनश्याम दास बिड़ला ये सभी कांग्रेस की टॉप ब्रास के करीबी थी। अब बजाज जी या बिड़ला जी तो अपनी फैक्ट्रियों को नहीं जोत रहे थे, वो काम तो मजदूर वर्ग ही कर रहा था लेकिन हमारे सोशलिस्ट नेताओं ने इस फैक्ट के आगे आंखे मूंद रखी थी, आखिर पैसे का सवाल जो था।
Land Redistribution के इस सिनिस्टर एजेंडे के पीछे एक कारण यह भी था की क्षत्रियों की सोशल लेजिटिमेसी एक क्लास के रूप में पूरे भारत में सबसे मजबूत थी। राजपूतों की ऐसी पकड़ का कोई तोड़ नहीं था। नया सत्ता प्रेमी वर्ग इस फैक्ट से भली भांति परिचित था और डरता भी था। उसे पता था की अगर इस वर्ग की कमर नही तोड़ी गई तो ये लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी उसी तरह सत्ता पर कब्जा कर लेंगे जैसे हजारों सालों तक राजतंत्र में कर के रखा था।
अतः गरीबों और किसानों के उद्धार के बहाने सख्त और कठोर कानून लाकर हमे हमारी ही जमीन से बेदखल करने की प्रक्रिया शुरू हुई। जिस समाज में 95% से ज्यादा का तबका ग्रामीण था और जिसके पास संसाधनों के नाम पर ले देकर जमीन थी , उसी जमीन को बिना किसी संवैधानिक रीजनिंग के आम राजपूत से छीन लिया गया। बेचारा आम राजपूत जो सैंकड़ों सालों से अपने बड़े भाइयों के भरोसे बैठा था उसे पता भी नही चला और एक झटके में रातों रात उसके सोशल स्टेट्स का कायापलट कर दिया गया।
हालाकि यही लॉजिक उद्योगपतियों की इंडस्ट्रीज पर नही लगाया गया जहां सैंकड़ों मजदूर दिन रात घिस घिस कर खराब वर्किंग कंडीशंस में काम कर अपने घर रोजाना महज कुछ आने लेकर जाते थे।
ये लॉजिक उस वर्ग पर नही लगाया जिसका हजारों सालों से शिक्षा के डोमेन पर एकतरफा कब्जा था।
सिर्फ राजपूतों को ही खत्म करने के लिए तथाकथित आज़ाद भारत की सरकार यह निर्दयी कानून लाई। State Sponsored persecution का इससे बड़ा उदाहरण दुनिया में शायद ही कोई होगा।

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