The Architect

>
The Architect
पौराणिकता के मायाजाल में उलझे महाराणा प्रताप

पौराणिकता के मायाजाल में उलझे महाराणा प्रताप

निर्मित धारणाओं और छवि चमकाने वाली पीआर फैक्ट्रियों के समय में, यह आम बात है कि इंसानों को ‘अतिमानव’ बना दिया जाता है और सत्य की जगह पोस्ट ट्रुथ ले लेता है। इतिहास का तोड़ा-मरोड़ा जाना, अतिशयोक्ति या दुष्प्रचार करना इस वैश्विक प्रवृत्ति में कोई नई बात नहीं है। इतिहास में पहले भी हल्के बदलाव के साथ प्राच्यवादी नज़र (ओरिएंटलिस्ट गेज़) ने इस तरकीब का इस्तेमाल उस लेंस को बदलने के लिए किया था, जिससे दुनिया पूर्व को देखती थी। इसी तर्ज़ पर शीत युद्ध के दौर में सिनेमा ने कुछ समुदायों को बदनाम करने या विशिष्ट विचारधाराओं को आगे बढ़ाने के लिए एक प्रचार उपकरण के रूप में काम किया। ऐसे ही अफ्रीकी और एशियाई इतिहास, साहित्य और संस्कृति के ‘आंग्लीकरण’ ने एशियाई और अफ्रीकी मूल के लोगों के लिए उनकी अपनी पहचान को ही पराया बना दिया गया। मध्यकालीन मेवाड़ के शासक, महाराणा प्रताप का मामला भी कुछ ऐसा ही है, जिनकी छवि को कविताई अति–प्रशंसा और षडयंत्रकारी ह्रासन के विपरीत ध्रुवों के बीच उलझा दिया गया है।  महाराणा को नैतिक ईमानदारी, साहस और दृढ़ता के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है, लेकिन समय के साथ, महाराणा की इस मरणोपरांत लोकप्रियता को राजनीतिक विचारकों ने अपने–अपने ढांचे में ढालने के लिए इस्तेमाल किया है। एक तरफ जहाँ दक्षिणपंथी, महाराणा को एक कट्टर धार्मिक शुद्धतावादी के रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं, जो मान सिंह को धोखा देने और अपनी बेटियों की शादी एक ‘तुर्क’ से करने के लिए उनके साथ भोजन भी नहीं करते थे; दूसरी ओर, प्रगतिशील वामपंथी और उदारवादी लॉबी उनसे जुड़ी किंवदंतियों का उपहास उड़ाकर महाराणा के कद को रद्द करने का काम करते हैं। इन दोनों विचारधाराओं की अतिवादी प्रतिक्रियाएँ  महाराणा के जीवन और वृत्तांत के साथ घोर अन्याय करती हैं। चारण रचित छंदों और मौखिक इतिहास को रद्द करने की प्रवृत्ति “हल्द्घाट रण दितिथिया, इक साथे त्रेया भान! रण उदय रवि अस्तगा, मध्य तप्त मकवान्!!’ (यह एक असाधारण संयोग था कि हल्दीघाट के युद्धक्षेत्र (18 जून 1576) में एक ही समय में तीन सूर्य चमके। पहले थे शानदार चमकते सितारे और शाही वंशज महाराणा प्रताप। सुबह का दूसरा उगता हुआ तारा था चमकता सूर्य, जो प्रतिदिन आकाश में चलता हुआ पश्चिमी पहाड़ों की ओर बढ़ता है और शाम के समय अस्त हो जाता है। तीसरा सूर्य था झालामान, जो दोपहर के चिलचिलाते सूरज की तरह वीर योद्धा महाराणा प्रताप के पक्ष में खड़े होने के लिए युद्ध में आगे बढ़ता जाता था।) ऐसी रचनाओं को मनगढ़ंत वृत्तांत और प्रायोजित शाही स्वप्रचार कहकर कमतर आंकने की जड़ें दरअसल हिंदी साहित्य को भक्तिकाल और रीतिकाल के दो कालों (शाखाओं) में विभाजित करने में निहित हैं; जिससे भक्ति का श्रेय लोक को दिया गया और रीतिकाल को सामंती व्यवस्था से जोड़ा गया। सामंती व्यवस्था से जुड़ने के बाद रीतिकाल का साहित्य ‘निम्न स्तर’ का माना जाने लगा। रामविलास शर्मा ने रीति काव्य को सामंती या दरबारी काव्य भी कहा, जिससे राजपूताना शासकों के मौखिक रूप से संरक्षित शाही खातों को सम्मानजनक मान्यता नहीं मिल पाई। इसी के चलते प्रगतिशील वामपंथी उदारवादी विचारकों में मौखिक इतिहास और चारण रचित छंदों की परंपरा के प्रति तिरस्कार का भाव ​​पनपा और राजपूती काव्यात्मक रचना और लोककथाओं की ऐतिहासिकता के अकादमिक खंडन का आधार तैयार हुआ। इसलिए, प्रगतिशील लॉबी द्वारा महाराणा की वीरता और उनके बलिदान की काव्यात्मक गाथा के संदर्भों को आज भी संदेह की दृष्टि से देखा जाता है और उनकी प्रामाणिकता पर बार बार सवाल उठाया जाता है। चारणों (चारणों का एक वर्ग जो युद्ध के मैदान में योद्धाओं के साथ जाते थे) द्वारा लोककथाओं में अतिशयोक्ति के तत्व से राजपूत सेनाओं में उनके मार्शल कारनामों की प्रशंसा करके सैनिकों को प्रेरित करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण के रूप में देखा जा सकता है। शासक राजाओं के चरित्र की स्पष्ट रूप से प्रशंसा की जाती थी और उन्हें उद्धारक और देवताओं के बराबर बताया जाता था, इसलिए लोककथाओं के बोल पौराणिक छवि को आदर्श बनाने के लिए उपयोग किए जाते थे, जो कार्लाइल के शब्दों में, लगभग ‘नायक-पूजा’ करने जैसा था। साहित्यिक अलंकरण के बावजूद, ये छंद उस प्रसिद्ध योद्धा के प्रति कवियों की गहरी ऋणग्रस्तता, चेतना और समर्पण का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्होंने अपने देशवासियों, क्षेत्र और अपनी मातृभूमि के सम्मान के लिए अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ अपना जीवन तक दांव पर लगा दिया था।1 इसलिए, छंदों, लोककाव्यों और लोककथाओं को ‘बड़ाई के औचित्य‘ के आधार पर स्पष्ट रूप से नहीं आंका जा सकता। मिथक और मिथ्या के बीच पतली

सतिप्रथा का ठीकरा और ठाकुर का सिर

सतिप्रथा का ठीकरा और ठाकुर का सिर

सती प्रथा का ज़िक्र हालही में सोशल मीडिया में फिर सुर्खियों में तब आया जब 2023 में अहमदाबाद की 28 वर्षीय इंजीनियर संगीता लखरा पर

राजपूतिकरण के मोहपाश में फंसा बहुजन समाज

राजपूतिकरण के मोहपाश में फंसा बहुजन समाज

माननीय हाई कोर्ट ने हालही में फैसला दिया कि जातीय भेदभाव से बचने के लिए एक व्यक्ति अपना जातीय उपनाम बदल सकता है या जो

Colonel Tod and the Rajput History : Undoing The Damage Done

Colonel Tod and the Rajput History : Undoing The Damage Done

Anyone familiar with the history of Rajputs and Rajasthan would be equally familiar with the British courtly chronicler Colonel James Tod, who came to the

राजपूत और सिख संबंध : साफ़ नज़र और साफ़ नीयत से पुनर्वलोकन

राजपूत और सिख संबंध : साफ़ नज़र और साफ़ नीयत से पुनर्वलोकन

आज गुरु गोबिंद सिंहजी के जन्म दिहाड़े पर उन्हें श्रद्धापूर्वक याद करते हुए साल की आखिरी पोस्ट लिख रही हूं राजपूतों और खालसा पंथ के

Gurjar Pratihar Debate: Separating the Grain from the Chaff

Gurjar Pratihar Debate: Separating the Grain from the Chaff

In this era of identity politics, history has become the social capital on which almost all the communities are claiming their right & have, consequently,

Rajputs and the Indian Left Politics

Rajputs and the Indian Left Politics

The Indian politics is primarily centered around the binaries of caste and religion with public centric issues being shoved on the back-burner as a norm. And sadly,

ओमप्रकाश वाल्मीकि का रचनासंसार और ‘ठाकुर’ का रूपक

ओमप्रकाश वाल्मीकि का रचनासंसार और ‘ठाकुर’ का रूपक

अक्सर popular discourse में और दलित विमर्श के संदर्भ में बौद्धिकों और प्रगतिशील समाज द्वारा ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की मार्मिक कविता ‘ठाकुर का कुआं‘ पढ़ी-पढ़ाई और

Maharana Pratap & The Phenomena of Legenditis

Maharana Pratap & The Phenomena of Legenditis

In the times of manufactured perceptions and image gloss-over PR factories, it is rather commonplace to find humans being inflated into super-humans and truth being

Queen Padmavati: The Classic Case of Academic Gaslighting

Queen Padmavati: The Classic Case of Academic Gaslighting

Activist Edward Snowden once quoted, “The whole system revolves around the idea that the majority can be made to believe anything, so long as it is

  • 1
  • 2

क्षत्रिय सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक चेतना मंच।

Jai Ramdev ji | Jai Tejaji |JaiGogaji |Jai Jambho ji| Jai Dulla Bhati | Jai Banda Bahadur |

Important Links

Contact Us

© 2023 kshatriyavoice

Start typing and press Enter to search

Shopping Cart