The Various Gurjara Castes vs The Gujjar Caste
सौराष्ट्र और कच्छ में गुर्जर सिलावट, गुर्जर सुनार, गुर्जर कुम्हार, गुर्जर मिस्त्री आदि कई जातियां मिलती हैं. इस मैप में ये सभी जातियां नारंगी रंग के बिंदुओं से दिखाई हैं | इन सभी जातियो में 11वी -12वी सदी में भीनमाल के पास सूकड़ी नदी के सूखने और भीनमाल के पतन के बाद सौराष्ट्र आने की कहानी प्रचलित है |
लाल रंग के बिंदु गुर्जर ब्राह्मण और गुर्जर बनिया के अंतर्गत आने वाली जातियों कि बसापत को दर्शाते हैं जो की क्षेत्र आधारित सैधांतिक वर्गीकरण है. इसलिए ये जातियां आज के संपूर्ण गुजरात और आसपास के क्षेत्रो में मिलती हैं | इसी मैप में नीले रंग के बिंदु उत्तर भारत कि गूजर नाम कि मूलतः पशुपालक जाति कि बसापत को दर्शाते हैं जिनके खुद कि folklore के अनुसार इनकी उत्पत्ति मध्यकाल में पूर्वी राजस्थान में हुई है और ये यहां से यमुना घाटी से होते हुए कश्मीर तक फैले हैं |पीले रंग का जो क्षेत्र है वो प्राचीन कालीन गुर्जरात्र है |
थ्योरी यह दी जाती है कि गुर्जरात्र का नाम किसी गुर्जर नाम कि जनजाति के नाम पर पड़ा जो अब उत्तर भारत में मिलती है जिसकी इस क्षेत्र में भारी आबादी थी और गुर्जर नाम कि विभिन्न अन्य जातियां इस जनजाति से निकली पेशेवर जातियां हैं |पिछली पोस्ट में बताया ही है कि गुर्जरात्र नाम के क्षेत्र में गुर्जर नाम कि ऐसी किसी जनजाति के होने के प्रमाण ना तो इतिहास में कभी मिलते और ना ही वर्तमान में ऐसी कोई जाति मिलती.
अगर ये भी मान लें कि इस जनजाति का गुर्जरात्रा से पूर्णतया पलायन हो गया हो और वहां इनका कोई अवशेष भी नहीं बचा हो तो भी ऐसा कैसे संभव है कि एक साथ पलायन करने कि जगह एकदम विपरीत दिशा में इनका पलायन हुआ? अगर ये पेशेवर जातियां इस पशुपालक ‘जनजाति’ से निकली होती और इस जाति के ब्राह्मण, बनिया या कारीगर होते तो इनका पलायन भी अपने जजमानो के साथ होना चाहिए था |
गौरतलब है कि इतिहास में इस प्राचीन गुर्जरात्र के क्षेत्र यानी जालौर-सिरोही-बनासकांठा से सौराष्ट्र क्षेत्र कि तरफ लगातार पलायन होता आया है. सौराष्ट्र क्षेत्र में भी विशाल मात्रा में चारागाह भूमि मिलती है. पानी कि मात्रा सौराष्ट्र में अमुक क्षेत्र से ज्यादा है. इसलिये प्राचीन गुर्जरात्रा क्षेत्र के पशुपालक समाज सौराष्ट्र कि तरफ seasonal migration करते रहे हैं. इसी कारण सौराष्ट्र में रबाड़ी, भरवाड़ आदि जातियों कि भारी मात्रा है जो सभी जालौर-बनासकांठा से आए हैं. अभी भी ये seasonal migration चलता है |
इस मैप में साफ दिख रहा है कि गुर्जर प्रदेश से अन्य प्रदेशो मे बसने के कारण जिन जातियों के नाम के साथ गुर्जर लगता है या भौगोलिक वर्गीकरण के कारण गुर्जर लगता है वो इस प्रदेश के चारो तरफ इर्द गिर्द ही मिलती हैं जबकि उत्तर भारत कि पशुपालक गूजर जाति कि आबादी प्राचीन गुर्जर प्रदेश से ना केवल बाहर है बल्कि विपरीत दिशा मे है.
पहली बात तो ऐसा कैसे संभव है कि इतनी बड़ी जनजाति जिसके नाम पर पूरे प्रदेश का नाम पड़ा, उस जनजाति का वहां से पूर्णतया सफाया हो गया और किसी तरह के अवशेष भी नहीं मिलते?? दूसरा, सौराष्ट्र या गुजरात के अन्य क्षेत्रो कि तरफ स्वाभाविक पलायन कि बजाए बिलकुल विपरीत दिशा में इनका एकतरफा पलायन हुआ जिसमे इनके साथ कथित तौर पर इनसे संबंध रखने वाली कोई जाति बिलकुल नहीं गई?? सौराष्ट्र क्षेत्र में गुर्जरात्रा क्षेत्र से आई, गुर्जर नाम वाली हर एक जाति मिलती है, सिंध से आए मुस्लिम जाट तक मिल जाते हैं लेकिन इस गुर्जर नाम कि पशुपालक जाति का एक भी आदमी नहीं मिलता |
Written by Pushpendra Guhilot