Mewati Khanzadas are Jadaun Kshatriyas but Meos Are Muslim Meenas


भारतीय अकादमिया और मीडिया के ज्ञान के स्तर का अंदाजा इनके मेव और मेवात सम्बन्धी विमर्श से लगाया जा सकता है |भारतीय अकादमिक रिसर्च में सब जगह मेवो को मुस्लिम राजपूत लिख दिया गया है, मीडिया भी मुँह उठाए इन्हे मुस्लिम राजपूत लिखता है | आमजन भी इस मामले में कंफ्यूज है |जबकि इन्हे ये भी नहीं मालूम कि मेवात में दो प्रमुख मुस्लिम जातियां मिलती है या थीं- मेव और मेवाती खानजादा |

इनमे मेवाती खानजादा जादौन राजपूत हैं जबकि मेव राजपूत नहीं हैं. मेव असल में मीणा/मैना वर्ग की जाति है. मीणा की उपजाति भी कह सकते हैं |

ये मेव लोग 11वी- 12वी सदी में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में  फैल गए थे और बुलंदशहर से लेकर औरैय्या-जालौन तक कई छोटे छोटे राज्य बन गए थे | आज भी पश्चिम यूपी में कुछ हिन्दू मेव मिलते हैं बुलंदशहर, जेवर, बदायू आदि में| इन्हे मैना ठाकुर कहा जाता है| अब ये लोग मीणा surname लगाने लगे हैं. रबूपुरा में सीमा हैदर का जो सचिन मीणा है वो मैना ठाकुर यानी हिन्दू मेव ही है. इसीलिए वो खुद को ठकुराइन कह रही थी | कानपुर में बहमई के जो ठाकुर हैं जो एक दादी ठाकुर नाम कि जाति के हैं वो भी मेव के मिक्सचर माने जाते हैं | मेवात के मेव अपने को मुस्लिम राजपूत उसी कारण कहते हैं जैसे जाट गूजर अहीर मीणा आदि जातियों के लोग एक पीढ़ी पहले तक अपने को राजपूतो से निकला बताते थे. इनके भी जगा भाट इनको किसी ना किसी राजपूत वंश से निकला बताते हैं |

अब जाट गूजर अहीर मीणा लोगो को ऐसा क्लेम करने में शर्म आएगी लेकिन मेव क्योकि मुस्लिम हैं इसलिए वो अपने को कन्वर्टेड राजपूत कह सकते हैं और लोग मान भी लेते हैं. मेव खुद अपने को कन्वर्टेड राजपूत मानते हैं. अगर ये अब भी हिन्दू होते तो ये वो ही कर रहे होते जो जाट गूजर अहीर आदि आज कर रहे हैं | जबकि मेवात के मुस्लिम राजपूत अगर कोई है तो वो मेवाती खानजादा हैं जो जादौन राजपूत हैं. इनमे राजपूतो के अन्य गौत्र भी मिले हुए हैं| मेवात का क्षेत्र हमेशा से बृज के जादौन राजपूतो के अंतर्गत रहा था जिनकी राजधानी बयाना थी| तुर्को के समय तक इनमे एक शाखा आज के मेवात के तिजारा पर शासन करती थी. फिरोज शाह तुगलक के समय यहां के समरपाल और सोमपाल के मुस्लिम बनने कि कहानी प्रचलित है जिनका नाम बहादुर खान नाहर और छज्जू खान पड़ा. ये सम्पूर्ण मेवात के शासक थे| फिरोज शाह तुगलक ने इनके विरुद्ध अभियान चलाने के बाद बहादुर खान ‘नाहर’ को ही पूरा मेवात आधिकारिक रूप से जागीर में दे दिया |

इसके बाद दो सौ साल तक इन्होने मेवात पर एकछत्र राज किया| फ़ारसी स्त्रोतो में लगातार जिन मेवातियों का वर्णन आता है वो ये ही हैं| इनके आखिरी मेवात के शासक हसन खां मेवाती थे जो खनवा में महाराणा सांगा कि सेना में लड़े थे |

मेवात में बहुसंख्यक आबादी मेव जाति की थी लेकिन शासक/जागीरदार वर्ग ये मेवाती खानजादा ही थे | तिजारा के अलावा फिरोजपुर, नूह, कोटला आदि कस्बे इन्ही के थे| इनकी सेनाओ में मेव जाति के लोग निश्चित रूप से रहे होंगे लेकिन दोनों मे संबंध हमेशा सौहार्दपूर्ण नहीं रहे| 1857 में जब नूह, फिरोजपुर आदि कसबो पर मेवो ने चढ़ाई की तो खानजादो से उनकी लड़ाई हुई|

खानजादो की आबादी का मुख्य केन्द्र तिजारा-अलवर क्षेत्र में था| 1947 बंटवारे में मेवात के इस क्षेत्र से सबसे ज्यादा पलायन हुआ. इसलिए बहुसंख्यक मेवाती खानजादो का पलायन पाकिस्तान हो गया. इनमे बहुसंख्यक लोग सिंध के कराची, हैदराबाद और अन्य जिलों में बसे हुए हैं. पाकिस्तान के परमाणु बम बनाने वाले अब्दुल कादिर खान को भी मेवाती खानजादा बताया जाता है| आज भारत के मेवात में इस कम्युनिटी की मामूली आबादी है और संभव है की कुछ समय बाद ये

Written by Pushpendra Guhilot


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