मनुवादी सोच और श्रमण परंपरा: क्षत्रियों की ऐतिहासिक विरासत का विमर्श


राजर्ष सिंह वैस ✍️
हिन्दुओं के मनुवादी और संस्कृतवादी खेमे का मानना है की क्षत्रिय हमेशा से वेद, पुराण और अन्य पोथियों के हिसाब से ही राज करते आये है। इस खेमे ने आजाद इंडिया मे अपनी इस मान्यता को सार्वभौमिक तथ्य के तौर पर स्थापित भी कर लिया है।
इसी मान्यता को आधार बना मनुवादियों द्वारा बौद्ध, जैन, आजीविका, नाथपंथ इत्यादि धर्मो को मानने वाले क्षत्रियों के खिलाफ अनाप शनाप प्रचार किया जाता है। उनके उपर भारत यानी इंडिया के स्वर्णयुग को खतम करने का दोष मढ दिया जाता। जबकि ये मान्यता निराधार है श्रमण परंपराओ को मानने वालो ने ही भारत को उसका स्वर्ण युग दिया था।
जैसा की हम सभी पहले से जानते और मानते है, ऋग्वेद का दसवा मंडल संकलित किये जाने के बाद ही हिन्दुओं मे चार वर्णो की व्यवस्था को अमली जामा पहनाया गया। ऋग्वेद के हिसाब से समाज को ब्राह्मण, राजन्य, वैश्य और शुद्र नाम के चार वर्णो मे बाँटा गया।
लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ की वैदिक काल के बाद समाज के अन्य वर्णो के नाम तो वही रहे जो होने थे पर राजन्य वर्ण का नाम बदल के क्षत्रिय/खत्तिय हो गया ? राजन्यों ने ऐसा क्यों किया, वो ऋग्वेद के विधान के विरुद्ध जाके क्षत्रिय पहचान क्यों अपनाये किसी और वर्ण ने क्यों ऐसा नही किया ?
ये वही क्षत्रिय/खत्तिय पहचान है जिसके बिगड़े हुए प्रारूप से ईरानी राजाओं के लिए प्रयुक्त होने वाला शाह उपनाम अस्तित्व मे आया ? ये वही क्षत्रिय पहचान जो हजार साल बीत जाने के बाद भी अवध/पूर्वांचल की हजारो साल पुरानी राजपूत बसावत द्वारा मुख्य रूप से प्रयोग मे लाई जाती है ? पूर्वांचल और नेपाल मे शाह शाही उपनाम का प्रचलन भी इसी कारण से है हालांकि इतिहास्यकारों द्वारा इस चलन का क्रेडिट तुर्कों और मुगलो को दिया जाता है।
उपर मैं जो समझाना चाह रहा उसे आप समझ सके तो ही समझ सकेंगें की
> क्यों चंद्रगुप्त मौर्य(परमार) को शूद्र घोसित किया जाने का प्रयास किया जाता रहा है।
> क्यों अशोक मौर्य(परमार) के लिए प्रयोग होने वाले देवनांप्रीय शब्द का संस्कृत मे अर्थ मूर्ख किया गया।
> क्यों गौतम बुद्ध की विरासत को धक्का देने के उद्देश्य से बुद्धु शब्द इजाद किया गया।
> क्यों सिधुघाटी सभ्यता की धार्मिक पद्धति से संबंधित नाथ परंपरा के बाबा गोरखनाथ की विरासत के लिए गोरखधंधा शब्द इजाद हुआ जिसको भाजपा ने कुछ साल पहले प्रतिबंधित किया।
> क्यों महाराज जयचंद गहड़वाल को गद्दार होने की कहानी प्रचलन मे आई।
> क्यों मौर्यों और गुप्तों की राजधानी की आधारशिला पर पौराणिक पाताल लोक की संरचना की गयी।

क्षत्रिय सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक चेतना मंच।

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