नरेटिव की दुनिया में असाहय हमारे क्षत्रिय सामाजिक संगठन
आज इस देश की हर जाति victim card खेलने में लगी है। फर्जी Atrocity literature बनाकर ब्राउनी पॉइंट्स इकट्ठा करने में तल्लीन है। हर रोज एक नया नैरेटिव गढ़ा जाता है। पिछले दस साल से तो मैंने ही यह नोटिस कर लिया की ये देश फर्जी narratives के cesspool में इस कदर फस चुका है की अब यहां ना कोई चीज सत्य है और ना ही असत्य। कुल मिलाकर ओपनली लूटमारी चल रही है।
अब नजर डालते है इस veritable hellhole में क्षत्रियों द्वारा occupied स्थान पर। क्षत्रियों में सिर्फ राजस्थान ही एकमात्र राज्य रहा जहां संगठनात्मक दृष्टि से समाज को ऑर्गेनाइज्ड करने का ठाना गया। बाकी राज्यों में इंडिविजुअली क्षत्रियों ने ग्रोथ की लेकिन चूंकि grievances को express करने के लिए कोई ऑर्गेनाइज्ड प्लेटफॉर्म नहीं था इसलिए धीरे धीरे समाज कटता चला गया।
हमारा संगठन क्या था, श्री क्षत्रिय युवक संघ। हमारे संगठन ने क्या पाठ पढ़ाया, की अध्यात्म की तरफ बढ़ो, सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की बात करो, मानवता की सेवा करो, भारत को विश्वगुरु बनाने की चेष्टा करो, वसुधैव कुटुंबकम् फलाना ढिकाना।
I mean imagine, एक ऐसा संगठन और उसके फाउंडर्स जिन्होंने अपनी आंखों से क्षत्रिय edifice का विनाश होते देखा, जिन्होंने खुद पर्सनली हमारे खिलाफ चलाए गए एजेंडा को विटनेस किया, जिन्होंने हमारे गरीब क्षत्रिय भाइयों की जिंदगी को रातों रात पलटते देखा , उन्होंने इस पर इंट्रोस्पेक्शन करना तो छोड़ो उनका हाथ छोड़ एक नई ही लाइन पकड़ ली। जब समाज के कमजोर तबके को संगठन के सहयोग की सबसे अधिक आवश्यकता थी तब यह वर्ग गरीब अनपढ़ क्षत्रियों को स्पिरिचुअलिटी और राष्ट्र निर्माण/प्रेम का पाठ पढ़ाने में व्यस्त हो गया।
हमारी unspoken grievances, हमारी व्यथाएँ सब धरी की धरी रह गई। आज की पीढ़ी को तो यह मालूम भी नहीं होगा की हमारे अपने ही लोगों ने किस तरह समाज पर अपने निजी फायदों के चलते कुठाराघात किया and set us back for decades while other communities surged ahead.
आज़ाद भारत में राजपूतों का इतिहास ही गद्दारी से भरा हुआ रहा है।