क्षत्रिय और फॉरवर्ड कास्ट का मिथक
क्षत्रियों को फॉरवार्ड जातियों के साथ शामिल किया जाना उनके साथ किया गया सबसे बड़ा खेल था। कुछ चंद राजे रजवाड़ों को छोड़ दिया जाए तो अनपढ़ किसानों , मजदूरों और सिपाहियों के इस समूह को बड़ी चालाकी से उन समूहों के साथ रखा गया जो नई परिस्थितियों में सत्ता बनाये रखने और समृद्ध बने रहने के सभी साधनों से पहले से ही सुसज्जित थे। सम्पन्न थे, शिक्षित थे, व्यवसायी थे, ब्यूरोक्रेट थे , बाबू थे, राजनीतिमें जिनका वर्चस्व स्थापित हो चुका था, सत्ता के वास्तविक भोगी थे।
राजपूतों को गुलामों की तरह अपने खूंटे से बांधे रखने से इन्हें कई तरह से लाभ हुए। एक तरफ जहां इन्हें पिछड़े वंचित वर्गों को देने के लिए एक लक्ष्य मिल गया जिसकी तरफ उनका सारा क्रोध मोड़ दिया गया और क्षत्रिय को सबके शोषक के रूप में पेश कर स्वयं को उन्हीं वर्गों का साथी और मसीहा दिखाने का मौका मिल गया। इससे इन्हें अपनी सत्ता को आगे से आगे बनाये रखने का साधन मिला। दूसरी ओर इस दाँव से इस सवर्ण समूह का एक बहुत बड़ा जनाधार बन गया। जिससे इनके हाथों में केंद्रित संसाधनों की मात्रा का सही स्वरूप नही दिख पाया।
जब ये कहा जाता है कि ब्यूरोक्रेसी में, न्यायपालिका में, नौकरियों में, व्यवसायों में सवर्णों का इतना हिस्सा है, जबकि पिछड़ों का इतना ही हिस्सा है। बिल्कुल ऐसा ही है लेकिन बात ये है कि इन सबमें क्षत्रिय वर्ग का हिस्सा नगण्य है। उस सवर्ण नाम के समूह में पूरे उत्तर भारत में सबसे अधिक जनसंख्या वाला एक ऐसा समूह शामिल है जिसके पास कुछ नही हैं। उसे एक खूंटे से बांधे हुए पशु की भांति उस समूह में रखा गया है। वो पंचिंग बैग है जो सिर्फ मार खा रहा है। इस जाति को अगर इस सवर्ण नाम के समूह से हटा दिया जाए तो संसाधनों के संकेन्द्रण का वास्तविक चेहरा नजर आएगा।
मजे की बात ये है कि क्षत्रिय आज भी ये सब समझ नही पाए हैं कि तथाकथित सवर्ण एकता के नाम पर इन्हें क्या कीमत चुकानी पड़ी है। दलितों पिछड़ों को आपसे काट कर रखा जाता है जबकि यही तथाकथित बाकी सवर्ण ऐसे संगठन बनाये बैठे हैं जहां ये उन दलितों पिछड़ों को मैनेज करके चलते हैं। यही समूह वामपंथ है तो यही दक्षिणपंथ है। आप इनके लिए सिर्फ एक साधन हो, साध्य तो कोई और है।आपकी कभी सुध नही ली गयी इस देश में , क्यों? क्यूँकि आप तो ‘फॉरवार्ड कास्ट ‘ हैं जिसके पास इस देश की नजर में सब संसाधन हैं। आपके समान सामाजिक ,आर्थिक , शैक्षणिक परीस्थितियों वाले समूह सब पिछड़ी जातियों के रूप में चिन्हित होकर अपना विकास कर आगे निकल गए। वो कम से कम जागरूक होकर अपना हक़ मांग रहे हैं, आज सशक्त होकर इनसे टक्कर भी ले रहे हैं, इसलिए ये उन्हें पुचकार रहे हैं। लेकिन आप अभी भी इन सब बातों से अनजान इनके खेल का मोहरा बने हुए हैं।
क्षत्रिय समाज की आवश्यकताएं और उनके बच्चों का रोजगार और भविष्य सरकारी पन्नों में इन फॉरवार्ड कास्ट के आंकड़ों में कहीं घुट कर दम तोड देता है
यह वही समूह जो पहले भी आपकी आड़ में वास्तविक सत्ता का उपभोग करता था। और वाजिब परिस्थितयाँ देखकर आपका साथ छोड़ दूसरों के साथ जा बैठते थे और अंततःखुद ही सत्ता के शीर्ष पर जा बैठे। लेकिन आप नही समझेंगे अभी भी।
(penned by Pramod Shekhawat)