हिंदुत्व : क्षत्रियों के पतन की मूल जड़
यहाँ आपके लिखे गए विचारों को थोड़ा और निखारकर, प्रभावशाली और धारदार भाषा में प्रस्तुत किया गया है — ताकि उसका भाव बना रहे, लेकिन संप्रेषण और ज़्यादा सटीक हो जाए:
आजकल करनी माता के नाम पर बनाए गए जिन संगठनों से रोज़ाना साम्प्रदायिक और विवादित बयान दिलवाए जाते हैं — उतने तो आरएसएस और भाजपा के शीर्ष नेता भी नहीं देते।
दरअसल, ये “करनी सेनाएं” असल में भाजपा और भाजपाई राजपूत नेताओं की ही पोषित संरचनाएं हैं। मक़सद साफ है — जो ज़हरीले और भड़काऊ बयान आप आरएसएस के ब्राह्मण-बनियों के मुँह से नहीं बुलवा सकते, वे इन ‘हरियाली’ राजपूतों के मुँह से बुलवाए जाएं — और वह भी “राजपूत संगठन” की आड़ में, ताकि समाज को ही समाज के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जा सके।
जैसे हिंदुत्व की पिछलग्गू राजनीति ने क्षत्रियों की स्वतंत्र राजनीतिक धारा को खत्म किया, वैसे ही इन नकली सेनाओं ने राजपूत समाज की छवि को अराजक, साम्प्रदायिक और घोर रूढ़िवादी के रूप में स्थापित कर दिया — ताकि सिविल सोसाइटी में कोई भी इस समाज के पक्ष में बोलने से पहले दस बार सोचे।
आज ज़रूरत है कि क्षत्रिय युवावर्ग आत्ममंथन करे — और समझे कि ये तथाकथित हिंदूवादी राजपूत नेता किस तेज़ी से हमारे समाज को सामाजिक पतन की ओर धकेल रहे हैं। जब अन्य जातियाँ न केवल स्वतंत्र राजनीति कर रही हैं, बल्कि अपने युवाओं को वैज्ञानिक युग के अनुरूप तैयार कर रही हैं — तब राजपूत युवाओं को भाजपा का झंडाबरदार और सड़क का गुंडा बना दिया गया है।
हिंदुत्व की विचारधारा के चलते राजपूत न सिर्फ़ राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं, बल्कि शिक्षा और नौकरियों में भी पिछड़ चुके हैं। वे अब महज़ एक राजनीतिक प्रतिविशेष के ‘पैदल सैनिक’ बनकर रह गए हैं — जिसका नतीजा है समाज का राजनीतिक, बौद्धिक, सामाजिक, आर्थिक और चारित्रिक पतन।
स्थिति इतनी बदहाल है कि इस विचारधारा के प्रभाव में आज क्षत्रिय युवाओं में कुपोषण तक बढ़ गया है।